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Surendra Singh bhamboo

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Friday, September 24, 2010

किसानों की उम्मीद पर फिरा पानी (फसल बर्बाद)


इस बार इन्द्र भगवान इस तरह मेहरबान हुए कि अपने पिटारे (बारिश) को रोकने का नाम ही नहीं ले रहें है। इसका खामियाजा बेचारे जमीदार वर्ग (किसानों) को भुगतना पड़ रहा है।  उनकी मूंग, ग्वार (मोटे अनाज) की फसल तो पहले ही खराब कर चुका है। अब बाकि बची किसानों की आस बाजरे को भी गला,सड़ा दिया है।







उगे हुए तथा गले सड़े बाजरें के सिट्टे जैसे फोटों में दिखाये गये है। जिन लोगों ने  काट लिया है। उनके तो सिट्टे गल सड़ गये है। और जिन्होंने नहीं काटा है। उनके खडे पौधे  पर ही सिट्टे में नया बाजरा उगने लगा हे। आब बेचारे करें भी तो क्या लगातार बरसता पानी  और पकी खड़ी फसल सर पर करे तो क्या करे? सिवाय भगवान को कोसने के कुछ कर भी तो नहीं सकते है। हालांकि अबकी बार फसल की लगत बहुत अच्छी थी और पैदावार भी अच्छी हुई थी लेकिन यह तो वही बात हुई ‘‘ थाली में परोसने के बाद हाथ से निवाला छिन लिया’’ भगवान ने । किसान बेचारे जिनकी आस यह बाजरा और इसकी कड़की (पुले) थे बाजरा तो खराब हुआ ही हुआ कड़बी भी गल गई




यह बाजरा न तो खाने लायक रहा और न ही इसे पशु खा पायेगें  यह हाल हमारें यहा के आस पास सभी गांवों में है। लगता है इससे महगाई और भी बढेगी परन्तु कर भी क्या सकते है। यह तो प्रकृति है। देती है तो छप्पर फाड़ के देती हे। और लेती हैं तो भी छप्पर फाड़ के लेती है। देवा रे देवा....



सबसे ज्यादा समस्या कड़बी गलने से पशुओं के चारे की हो सकती है। अगर अब यह बारिश न थमी तो पशुओं के चारे के भी लाले पड़ जायेगे।
एक बात और है। इस खराब हुए बाजरे को काटने के लिए लोगों को मजदूरी और उपर से देनी पड रही है। और हाथ कुछ नहीं लगने वाला



ये जो सिट्टे दिखाये गये है। इनमें सिट्टे में ही बाजरा दुबारा उग आया है। और सिट्टा गलने लगा है। अब इसी आशा के साथ बैठे हैं बेचारे किसान कि कब मेघा रुके और कब पशुओं के लिए तो चारा बटोरना है।



सिट्टे में उगा नया बाजरा
  किसी भी फोटो  को बड़ा करके देखने के लिए  उस पर डबल क्लिक करें



आपके पढ़ने लायक यहां भी है।



प्राकृतिक छटाएं (दृश्य) जो मन को मोह ले



रंगारंग सांस्कृतिक भजन संध्या जिसने सबका मन मोह लिया



पत्थरी के रोग में बहुत उपयोगी है गोखरू



मालीगांव
लक्ष्य



 



 





2 comments:

  1. Surendraji,
    Vakai vikat sthiti hai.Govt.sey madad Prakrtik Apda ke mad mey mil sakti hai.

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  2. शहरों में रहनेवालों को मालूम भी नहीं होता कि गांव में किसान कैसे-कैसे फसलों को पैदा करने और उनके संभाल के रखने में अपनी उम्र निकाल देते हैं। हमारे लिए फैन्सी मॉलों में मिलनेवाली उतनी ही फैंसी चावल और आटे की बोरियां जहां से आती हैं, वहां की स्थिति क्या है। बारिश पर कविता लिखनेवाले हम जैसे लोगों को क्या मालूम कि उस बारिश पर लाखों किसानों की जीविका आश्रित है। आंखें खोलने के लिए धन्यवाद। और जानकारी के लिए आती रहूंगी।

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Surendra Singh bhamboo

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